Tuesday, October 26, 2010

हेल्थ और वेल्थ के बीच पिसा “कॉमन”



दिल्ली में हाल ही में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स का जश्न आप सभी ने
देखा होगा, कितना भव्य स्टेडियम, कितनी भव्य आतिशबाज़ी और कितना रंगारंग
कार्यक्रम, वाह! इस आयोजन पर हर किसी भारतीय को गर्व होगा। बात भी ठीक है
बेटी का ब्याह ठीक से हो जाए तो सभी घरातियों(लड़की वालों) को गर्व करनें
का अधिकार तो होता ही है। पर आज हम इस आयोजन की भव्यता की या कामयाबी की
बात नहीं करेंगे। हम बात करेंगे, सीडब्लूजी के मुख्य आयोजन स्थल जवाहर
लाल नेहरु स्टेडियम की भव्यता को गेम्स तक बनाए रखनें में योगदान देनें
वाले सफाईकर्मियों की या अंग्रेजी में कहे तो हाऊस कीपिंग स्टाफ की। इस
स्टाफ को तीन महीनें के लिए गुड़गांव की किसी एटूजेड नाम की कंपनी ने रखा
था। नियुक्ति के समय वादा किया गया किया गया कि 8 घंटे की शिफ्ट होगी और
5200 कुछ रु प्रतिमाह के हिसाब से मिलेगा। लेबर(सफाईकर्मियों) को खाना घर
से लाना है जिसके बदले आपको 750 रु खानें के अलग से दिऐ जाऐंगे चाय-पानी
कुछ नहीं। सुरक्षा कारणों के चलते मज़दूरों को ज्यादा दिनों तक खाना नहीं
लानें दिया गया। एक दिन में कोई ऐसा समय नहीं था जब हाऊस कीपिंग स्टाफ ने
अपने काम में चोरी की हो। बल्कि मुझे यह कहते हुए कोई शक-शुब़ा नहीं है
कि सबसे ज्यादा काम यदि कोई करता दिखता था तो, वो थे विदेशी कर्मचारी और
हाऊस कीपिंग स्टाफ। लोग आते-जाते रहते पर मैनें इन्हें हमेशा अपना काम
पूरी निष्ठा से करता पाया, ये बेचारे तो किसी आने-जानें वाले को मना भी
नहीं कर सकते थे कि “अभी पोछा लगाया आप ज़रा इधर से चले जाऐ”। हर एक घंटे
में कीट-पतंगों का ढ़ेर स्टेडियम के किसी कोनें को भी नहीं छोड़ता था।
कुछ पल बाद ही टिड्डे और तितलियों की संख्या सैंकडों से लाखों में हो
जाती थी, रात के समय तो मत पूछिए पलक झपकाना तक मुश्किल था। परंतु ऐसी
विकट स्तिथि में भी इन सफाईकर्मियों नें अपना काम पूरा किया वो भी निष्ठा
और ईमानदारी से। रोज़ सुबह मीडिया लॉंज, फोटों और प्रेस वर्क रूम कि सफाई
करनें वाली राधा का कहना था कि हर रोज़ उन्हें खानें को लेकर एक संघर्ष
करना होता है कभी खाना खराब आता है तो कभी आता ही नहीं है, कभी आता है तो
हमें खानें का समय ही नहीं मिल पाता और खाना खत्म हो जाता है। दरअसल
खानें को लेकर मामला क्यों इतना बिगड़ा आपको बताते है। आयोजन समिति ने
जेएनएल में खानें का ठेका पहले अग्रवाल फूड प्रोड्क्ट्स लि.(वर्क फोर्स
के लिए) को दिया, बाद में ये काम गोयल फूड(वर्कफोर्स और वॉलेन्टियर्स) को
दिया गया। वीआईपी लोगों के लिए खानें का ठेका ग्रेविस को दिया गया, अन्य
स्टेडियमों में वीआईपी लोगों के लिए खानें का ठेका लॉरेंस रोड़ दिल्ली के
सेवन सीज़ को दिया गया और दर्शकों के खरीद कर खाने के लिए स्टाल लगानें
का ठेका फास्ट ट्रैक को दिया गया, दिल्ली के मशहूर “नाथूज” को यमुना
स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में खानें का ठेका मिला और गेम्स विलेज में 5
सितारा होटल को खानें का काम दिया गया। आयोजन समिति की तरफ से अन्य
वेन्यूज़ पर अन्य कंपनी को खानें काम सौपनें पर भी खानें को लेकर वर्क
फोर्स को हमेशा से शिकायते मिलती रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि खाना
ख़राब आ रहा था वो भी सप्ताह में पांच बार। जेएनएल में हाऊस कीपिंग स्टाफ
के लोगों को जब खाने को लेकर हड़ताल करनी पड़ी और काम रोक दिया गया तो
एटूजेड कंपनी नें आनन-फानन में अपनें से बीकानेरवाला के “आंगन” की पैक्ड
थाली मंगवाना शुरु कर दिया। पेट की भूख के लिए लड़ते सफाईकर्मियों को कम
से कम एक थाली भोजन से तो संतुष्टी मिली थी। दो दिन बाद नवरात्र शुरु हो
गए हमारी भारतीय महिला बेचारी किसी भी स्थिति में भगवान को नहीं भूलती
सुबह से शाम तक स्टेडियम में सफाई का काम करनें वाली राधा जैसी ना जानें
कितनी महिलाएं व्रत में रहते हुए भी अपना काम पूरी निष्ठा से करती। शाम
को एक कप चाय पीनें के लिए मुझसे सुबह की सफाई के समय ही कह देती कि
“मेरा व्रत है सर शाम को एक कप चाय के लिए बोल दिजिएगा मीडिया लॉंज में
वे लोग हमें मना कर देते है”। मुझे लगता कि जिसकी जितनी मेहनत है उसे
उतना क्यों नहीं मिलता है? सफाईकर्मियों की भांति विदेशी इंजीनियरों की
एक बात की तारीफ करनी होगी वे लोग अपना सारा काम स्वंय करते थे, इतनी
बड़ी-बड़ी लाईटों और ट्रांसमीटरों को वे स्वंय से उंची जगहों पर चढ़ाते
और उनकी सेटिंग करते वो भी बिना किसी लेबर के। ख़ैर हम बात कर रहे थे
हाऊस कीपिंग की उनके लिए खाना तो आनें लगा बीकानेरवाला, मुझे बड़ी खुशी
हुई कि चलों इन्हें तो हम से अच्छा खाना मिल रहा है। पर बाद में पता चला
कि एटूजेड कंपनी वालों अपनें कर्मचारियों(सफाईकर्मियों) के वेतन से खानें
का साला पैसा काट लिया है। जबकि हाऊस कीपिंग स्टाफ का कहना है कि कंपनी
ने पहले कहा था कि 5200 कुछ रुपयों के वेतन के अलावा आपको खानें के पैसे
अलग से दिए जाएंगे यदि नहीं मिला खाना तो। पहले तो खाना मिला नहीं, बाद
में खाना खराब आनें लगा और जब सही आया तो पैसे काट लिए गए। क्लोजिंग
सेरमनी में राधा ने बताया कि कंपनी ने 4400 रु देनें की बता कही है और
कहा है कि बाकि पैसे आपके खानें के काट लिए गए है...। वाह रे मेरे
कॉमनवेल्थ! पूरे दिन मेहनत करनें वालों को ना खाना ढंग का दिया ना पानी
और काम खत्म हुआ तो तनख्वा भी काट ली? क्या बताएं कौन सा कॉमनवेल्थ,
किसकी हेल्थ और किसकी वेल्थ!


नवीन कुमार "रणवीर"
09717370637

Thursday, September 16, 2010

भगवा ब्रिग्रेड पर तत्काल लगे प्रतिबंध

भगवा ब्रिग्रेड पर तत्तकाल लगे प्रतिबंध - JUCS
मध्य प्रदेश भाजपा सरकार स्थिति स्पष्ट करे - JUCS
चिदंबरम और दिगविजय सिंह भगवा ब्रिगेड पर चुप क्यों - JUCS

जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी (JUCS) की मध्य प्रदेश ईकाई ने जबलपुर रेलवे स्टेशन पर ‘भगवा ब्रिगेड का हिंदू योद्धा भर्ती अभियान’ का पोस्टर पाया। यह पोस्टर पूरे मध्य प्रदेश में सार्वजनिक स्थानों पर लगा है। इस पोस्टर में हिन्दुत्वादियों द्वारा प्रस्तावित अयोध्या में राम मंदिर के ढ़ंाचे का छाया चित्र लगा है। इस पोस्टर में स्पष्ट रुप से लिखा है ‘म0 प्र0 में 10000 हिंदू योद्धा की भर्ती अभियान की शुरुआत की है हम हिंदू युवाओं से इस मिशन से जुड़ने की अपील करते हैं’ तब ऐसे में JUCS भाजपा शासित सरकार और मुख्य विपक्ष कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठाता है।
इस पोस्टर में भगत सिंह, शिवाजी, चंद्रशेखर आजाद, भीम राव अंबेडकर समेत महान और क्रांतिकारी व्यक्तित्वों के छाया चित्र के साथ सावरकर जैसे व्यक्ति जिसने अग्रेंजों से माफी मांगी थी, के भी चित्र का इस्तेमाल करके भगवा ब्रिगेड युवाओं को अपने सांप्रदायिक एजेंडे पर भड़काना चाहता है। हिंदू योद्धा की भर्ती अभियान की बात करने वाले भगवा ब्रिगेड ने इस तथ्य को प्रमाणित कर दिया है कि हिंदू युवाओं को भड़काकर ऐसे संगठन उनका सैन्यकरण कर सांप्रदायिक और आतंकवादी देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त करते हैं।
इस पोस्टर पर भगवा ब्रिगेड के मार्ग दर्शक दामोदर सिंह यादव और संयोजक राजेश विड़कर के छाया चित्र लगे हैं और इनका पता 752 जनता क्वाटर्स, नंदानगर इंदौर और मोबाइल नंम्बर 8120002000, 9977900001 है। ऐसे में JUCS भगवा ब्रिगेड के दोनों नेताओं समेत इस संगठन के पदाधिकारियों और सदस्यों पर देश द्रोह के तहत कार्यवायी करने और दिये हुए पते के मकान को तत्काल सीज करने की मांग करता है। ऐसे में JUCS तत्काल प्रभाव से इस भगवा ब्रिगेड के पोस्टर समेत इस संगठन पर प्रतिबंध लगाते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग करता है क्यों की मध्य प्रदेश से लगातार हिन्दुत्ववादियों के आतंकवादी घटनाओं में लिप्त होने के मामले पिछले दिनों आए हैं।
ऐसे दौर में जब अयोध्या मसले पर फैसला आने वाला है, तब ऐसे पोस्टरों का मध्य प्रदेश में जारी होना भाजपा सरकार की मंशा को बताता है कि वो हर हाल में देश का अमन-चैन बिगाड़ने पर उतारु है। वो अब अपने लंपट गिरोह के बजरंगियों को सड़क पर उत्पात करने के लिए छोड़नें की तैयारी में है, जैसा की उसनें 92 में यूपी में और 2002 में गुजरात में किया था। ऐसे में हम मांग करते हैं कि भाजपा सरकार इस मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे।
JUCS ने मध्य प्रदेश में मुख्य विपक्ष कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि वह हिंदू वोट बैंक के खातिर इस गंभीर मसले पर शांत है। क्योंकि सांप्रदायिक तनाव में वह अपना भविष्य खोज रही है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जो संघ गिरोह के आतंक पर यूपी में आकर राजनीति करते हैं वो इस मसले पर क्यों चुप हैं?
गृह मंत्री पी चिदंबरम जो इस मसले पर काफी बोल रहे हैं उनको JUCS भगवा ब्रिगेड के इस सांप्रदायिक करतूत को बता रहा है। गृह मंत्री इस गंभीर सांप्रदायिक मसले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें?

द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम, विजय प्रताप, राजीव यादव, शाह आलम, ऋषि सिंह, अवनीश राय, राघवेंद्र प्रताप सिंह, अरुण उरांव, विवके मिश्रा, देवाशीष प्रसून, अंशु माला सिंह, शालिनी बाजपेई, महेश यादव, संदीप दूबे, तारिक शफीक, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, शिवदास, ओम नागर, हरेराम मिश्रा, मसीहुद्दीन संजरी, राकेश, रवि राव।
संपर्क - 09415254919, 09452800752,09873672153, 09015898445 -- RAJEEV YADAV, Organization Secretary, U.P,

Peoples Union for Civil Liberties (PUCL) 09452800752

Sunday, September 5, 2010

मेरे मन की बात...


वो पहले प्रेमिका थी,

फिर पत्नि बनी, फिर मां...

हर किसी के लिए एक रिश्ते के साथ

हर किसी के लिए एक नाम के साथ
हर किसी के लिए नई जिम्मेदारियों के साथ

और हर किसी के लिए करुणा के साथ।

वो अपनें लिए कभी कुछ ना करे,

करे बस औरों के लिए...

बदली जो कभी वो,

तो बनी बुरी सदा...
सब कुछ वो ही क्यों निभाऐ?
क्यों साथी ना मिले ऐसा जो उसकी समझे
और अपनी भी बतियाऐ...
कौन सुनें उसकी और किसे अपनी व्यथा बताऐ?

गर जगह दे दिल में,

तो जिंदगी में जगह क्यों ना दे पाए?

समय पर ही ध्यान दे लेवे

तो वो काहे बाहर जाए...।

क्यों फिर तिरस्कार का अपमान,

झट बौना कहलाए...

रिश्तों की झूठी शान में,

क्यों बैरी मन हो जाए...।

क्यों ना करे वो अपनें मन की...

क्यों ढ़ोए वो झूठे रिश्तों की खाली गगरी...

Tuesday, August 3, 2010

संजय गांधी की लंपट परम्परा के नए वाहक वी एन राय: जेयूसीएस

संजय गांधी की लंपट परम्परा के नए वाहक वी एन राय: जेयूसीएस
- कुलपति पद से हटाने की मांग, चलेगा हस्ताक्षर अभियान
नई दिल्ली, 2 अगस्त । महात्मा गांधी अंतर राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति वी एन राय के स्त्री विरोधी बयान की जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस) ने कड़ी निंदा की है। जेयूसीएसनेउन्हें तत्काल कुलपति जैसे जिम्मेदाराना पद से हटाने की भी मांग की है।

संजय गांधी
जेयूसीएस की तरफ से सोमवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि कुलपति जैसे अकादमिक महत्व के पद पर नियुक्त व्यक्ति अगर स्त्रियों के प्रति ऐसा नजरिया रखता हो तो समाज को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। क्योंकि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान ही किसी भी देश के भविष्य को तय करते हैं। संगठन ने उन्हें तत्काल उनके पद से हटाने की मांग करते हुए कहा कि वीएन राय का यह बयान बहुत हद तक आपेक्षित है, क्योंकि वह जिस पुलिसिया पृष्टभूमि से आते हैं, उनसे इससे इतर कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती। दरअसल, पिछले दिनों जिन तीन विश्वविद्यालयों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया और वर्धा विश्वविद्यालय में पुलिसिया और प्रशासनिक पृष्टभूमि के लोग कुलपति बने हैं, तब से इन विश्वविद्यालयों में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। कहीं सूचना का अधिकार का इस्तेमाल करने पर लगभग डेढ़ सौ छात्रों को निलम्बित कर दिया गया तो कहीं विश्वविद्यालय में संगोष्ठी व सेमिनारों पर भी प्रतिबंध है। वर्धा में तो दलित विरोधी व अपनी जाति के भाई-भतीजों की नियुक्ति से लेकर नकल करके किताबें लिखने वाले अनिल अंकित राय को विभागाध्यक्ष बनाने का मामला पहले ही सामने आ चुका है। अब वहां के कुलपति ने जो स्त्रियों के प्रति अपनी गंदी सोच जाहिर की वह इस सिलसिले का नया धत्तकर्म है।
जेयूसीएस का मानना है कि अपने गृह जनपद में महिला हिंसा जैसे मुद्दों पर एनजीओ चलाने वाले ऐसे कुलपति को अब तक संरक्षण देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी भी जिम्मेदार है। जिसने इनके खिलाफ अब तक छात्रों व तमाम जन संगठनों की तरफ से मिली शिकायतों व साक्ष्यों को न सिर्फ नजरअंदाज किया बल्कि इस पूर्व पुलिस अधिकारी को विश्वविद्यालय में डंडा भांजने, गाली-गलौज करने की खुली छूट भी दे रखी है। ऐसा लगता है कि राज्य भविष्य के जिस अपने सैन्य राष्ट् की परियोजना पर काम कर रही है, यह सब उसी के तहत हो रहा है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ में राज्य, माओवाद के दमन के नाम पर फिराक गोरखपुरी के पौत्र व तथाकथित साहित्यकार का लबादा ओढ़े विश्वरंजन का इस्तेमाल आदिवासियों के निर्मम दमन के लिए करती है, ठीक उसी तरह कैम्पस में लोकतंत्र की हत्या के लिए इस कथित प्रगतिशील पुलिस वाले का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह दरअसल ‘मिलिट्री रिप्रेशन विद ह्यूमन फेस’ (मानवी चेहरे के साथ सैन्य दमन) का मामला है। इसलिए संगठन का मानना है कि वी एन राय के इस बयान को सिर्फ साहित्यिक दायरे तक सीमित करके देखने की बजाय लोकतंत्र के व्यापक फलक में देखा जाना चाहिए।

रविन्द्र कालिया
राय के स्त्री विरोधी व लंपट विचारों को स्थान देने वाली पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक रविन्द्र कालिया वही व्यक्ति हैं जो आधुनिक भारत के लंपटीकरण के प्रवर्तक संजय गांधी का भाषण लिखा करते थे। ऐसा लगता है कि जिस तरह से दिन ब दिन कांग्रेस का खूनी पंजा मजबूत होता जा रहा है, वैसे-वैसे उस दौर की तमाम विकृतियां भी समाज में कालिया व राय जैसे लोगों के माध्यम से सचेत रूप से फैलायी जा रही हैं। आखिर स्त्रियों को ‘छिनाल’ कहने वाले वी एन राय, उसे जगह देने वाले कालिया और तीन दशक पहले जबरन लाखों लोगों का नसबंदी कराने वाले संजय गांधी में क्या अंतर है? संजय युग की घोर दलित, स्त्री व गरीब विरोधी युग की वापसी का प्रयत्न करने वाले रविन्द्र कालिया इससे पहले भी नया ज्ञानोदय के जनवरी 2010 के मीडिया विशेषांक के संपादकीय में कथित विकास की दौड़ में पिछड़ गए और राज्य की जिम्मेदारी से भागने की स्थिति में फुटपाथों पर भीख मांग कर जीवनयापन कर रहे वर्ग को भी गरिया चुके हैं (देखें नया ज्ञानोदय का जनवरी 2010 मीडिया विशेषांक - अब तो संपन्नता का यह उदाहरण है कि भिखारियों के पास भी फोन की सुविधा उपलब्ध है। वे फोन पर खबर रखते हैं कि किस उपासना-स्थल पर दानार्थियों की भीड़ अधिक है।) क्या कालिया का यह बयान तुर्कमान गेट के भिखारियों को अपने महंगी विदेशी गाड़ियों से रौंदने वाले संजय गांधी के काले कारनामों की पुनर्वापसी की वैचारिक पृष्टभूमि तैयार करने जैसी नहीं है?
संगठन ने तमाम प्रगतिशील धारा से जुड़े लेखक, पत्रकार व जन संगठनों से भी अपील की है कि जब तक इस स्त्री विरोधी, दलित विरोधी, जातिवादी, भ्रष्ट् कुलपति को वर्धा विश्वविद्यालय से हटा नहीं दिया जाता, तब तक वर्धा विश्वविद्यालय और उसके दूरस्थ केन्द्रों पर आयोजित कार्यक्रमों का बहिष्कार करें और इन्हें अपने कार्यक्रम में प्रवेश प्रतिबंधित कर दें। जेयूसीएस ने कुलपति वी एन राय को हटाने की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान का निर्णय लिया है। इसके तहत संगठन के लोग छात्रों व समाज के प्रति संवेदनशील लोगों से समर्थन की अपील करेंगे।
- द्वारा जारी
अवनीश राय, शाह आलम, विजय प्रताप, ऋषि कुमार सिंह, देवाशीष प्रसून, अरूण उरांव, राजीव यादव, शाहनवाज़ आलम, चन्द्रिका, दिलीप, लक्ष्मण प्रसाद, उत्पल कान्त अनीस, अजय कुमार सिंह, राघवेंद्र प्रताप सिंह, शिवदास, अलका सिंह, अंशुमाला सिंह, श्वेता सिंह, नवीन कुमार, प्रबुद्ध गौतम, अर्चना महतो, विवेक मिश्रा, रवि राव, राकेश, तारिक शफीक, मसिहुद्दीन संजारी, दीपक राव, करूणा, आकाश, नाजिया अन्य साथी
जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी (जेयूसीएस), नई दिल्ली इकाई द्वारा जारी. संपर्क – 9873672153, 9910638355, 931312994

Friday, May 7, 2010

जातिगत जनगणना से परेशान विनोद दुआ!

जातिगत जनगणना पर मीडिया जाति के आधार पर जनगणना के विरोध में और समर्थन में उठ रहे स्वरों पर एनडीटीवी इंडिया के ख़ास कार्यक्रम विनोद दुआ लाइव में, विनोद जी का कहना है कि देश के वो नेता जिन्होनें मंडल के दौर(90) से राजनीति में कदम रखाया अपनें राजनीतिक भविष्य की नींव रखी। उन नेताओं को इसलिए इस सेंसेस की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें ये पता चल जाए कि उनका वोट बैंक कितना है? विनोद जी नें अपनी ख़बर में ये भी कहा कि 1931 के बाद से जाति आधारित जनगणना नहीं हुई थी और 80 के दशक में कांग्रेस का नारा "जात पर ना पात परमोहर लगेगी हाथ पर" ने जाति को तोड़नें का काम किया। विनोद जी का ये भी कहना है कि वी पी सिंह नें यदि आरक्षण का आधार आर्थिक रखा होता तो शायद देश में जाति के नाम होनें वाले अत्याचार और भेदभाव ना होते और मंडल कमीशन नें देश में जातिगत भेदभाव को कम करने में बाधा का काम किया है। इसका उदाहरण उन्होनें ये कहकर दिया है कि 80 के दशक में अंतरजातीय विवाह और प्रेम-विवाह के मामले ज्यादा आ रहे थे, जिससे ये लगता था कि देश अब जातिगत बंधनों से आगे की सोच की ओर अग्रसर है। परंतु वी.पी.सिंह जैसे नेताओ ने जातिगत भेदभाव बढ़ानें का काम किया है। विनोद जी ने ताज़ा मामले को मिसाल के तौर पर पेश करते हुए ये बताया है कि पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या भी अंतरजातीय विवाह के विरोध में हुई है। जिसमें बिहार का रहनें वाला लड़का कायस्थ था और झारखंड की रहनें निरुपमा ब्राह्मण थी। विनोद जी सीधे तौर पर आरक्षण के विरुद्ध है या आधार पर आरक्षण के विरुद्ध है? विनोद जी ने मंडल का उदाहरण दिया कि "इन नेताओंनें (मुलायम,लालू,पासवान,,करुणानिधि) जातिगत भेदभाव को बरकरार रखने और बढ़ाने का काम किया है"
लेकिन मैं विनोद जी से पूछना चाहता हूं कि क्या देश म जितनें अंतर जातीय विवाह 90 से लेकर आजतक हुए हैं क्या उनकी संख्या 1950 से 90(मंडल) तक से कम है?क्या देश में जितनें जातिगत अत्याचारों के मामले एससी-एसटी कमीशन में है या जो सामनें आए है (संख्या सामनें ना आनें वालो की ज्यादा है) वो सभी 90 के बाद की है? 90 से पहले के दौर में लोगों तक सूचना तो पूरी तरह तक पहुचती नहीं थी और आप कह रहे है कि "देश जातिगत बंधनों से ऊपर उठ रहा था, देश में अंतर जातीय विवाह हो रहे थे "विनोद जी क्या उस समय में (90 से पहले) किसी अख़बार में जाति के आधार पर शादी के विज्ञापन नहीं आते थे? 90 से पहले तक कितनें लोग सवर्ण (जनरल कैटगिरी) के सरकारी नौकरी पर या राजनीति में अच्छे पदों पर थे? और कितनें बाबू जगजीवन राम और कपूरी ठाकुर थे? जिस दौर की आप दुहाई दे रहे है ना, उसी दौर में एक दलित सरकारी कर्मचारी(कांशीराम) सरकारी तंत्र में भेदभाव के चलते अपनी नौकरी छोड़कर दलितों-अल्पसंख्यकों और पिछड़ों की आवाज को डीएस-4 और बामसेफ के माध्यम से चेतना की मशाल लिए आगे बढ़ रहा था। ये वही दौर था जब कांशीराम के भाषणों की कैसेटों को टेपरिकॉडर में सुनानें के लिए माहौल की तलाश में कई बार लोगों नें उच्च जातियों के अत्याचार सहे। ये वही दौर था जब 1994 में डीएस-4 को बसपा का नाम मिला। परंतु आपको लगता है कि एक वी.पी.सिंह आकर सारे देश में जातिगत भेदभाव फैला गया वरना तो देश के सवर्ण वर्ग के लोग दलितो से बेटी-रोटी का रिश्ता रखते थे। ये वी.पी.सिंह और मंडलियों(मंडल के कमीशन के समर्थक नेता) नें राहुल गांधी को देश के दलितों के घर में जाकर खाना खानें को मज़बूर कर दिया। आपका तर्क था कि देश में आरक्षण का आधार यदि आर्थिक होता तो शायद देश इस जातिगत भेदभाव, जिसके कारण हाल ही में युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की हत्या हुई है वो नहीं होती, याकि देश में ऐसे मामले कम देखनें को मिलते। विनोद जी मैं आपको बता दूं कि मैं भी उसी संस्थान का छात्र रहा हूं जहां निरुपमा और प्रियभांशू पड़ते थे। दोनों ही सवर्ण है और दोनों में से कोई भी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। जातिगत भेदभाव आरक्षण का लाभ ना लेनें वाली जातियों में भी है और एक जाति में भी है, सवर्णों में भी वरीयता है और ब्राह्मणों में भी है। सरयूपारी-कानिबकुंज का भेद तो आप कोपता ही होगा, नहीं पता तो तो मैं आपको बता देता हूं मुझे भी लखनऊ के ही दो शुक्लाओं (टीवी पत्रकारों) नें बताया था। रावण को मारनें के बाद रामजी द्वारा किए गए रावण के श्राद को खानें के लिए जो ब्राह्मण सरयू नदी पार करके गए थे उन्हें कनिबकुंज ब्राह्मणों नें वापस आनें नहीं दिया और उनसे सारे संबध तोड़ दिए, क्योंकि रावण भी ब्राह्मण था और राम जी पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था। आज भी वो लोग आपस में शादी-ब्याह का संबंध करने से बचते हैं। शुक्ला, तिवारी, पांडे, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी, उपाध्याय उपनाम के लोग चौरसियाओं और त्यागीओं में शादी-ब्याह नहीं करते। वो तो किसी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। शर्मा जी का तो कोई भरोसा ही नहीं करता शुक्ला,तिवारी,पांडे,द्विवेदी,त्रिवेदी,चतुर्वेदी और उपाध्याय लोगों का कहना है कि ये तो पता ही नहीं चलता कि ये (शर्मा जी) कौन से ब्राह्मण है? भूमिहार ब्राह्मण और भूमिहार ठाकुर अन्य ठाकुरों और ब्राह्मणों से शादी करनें के लिए जातिगत आडंबरों से आज तक ऊपर नहीं उठ पाए हैं। ये लोग भी आरक्षण के दायरे में नहीं आते। तो जब मामला सामजिक भेदभाव का हो तो उसे मिटानें या कम करनें के लिए या समाज के उस तबके को ऊपर उठानें के लिए सामजिक आधार होना महत्वपूर्ण ही नहीं आवश्यक है। जातिगत भेदभाव पुश्तों से चली आ रही सामंती सोच की देन है, ना कि बाबासाहब अंबेडकर या मंडल के समर्थक नेताओं की या किसी कमीशन की सिफारिशों की। सोच को बदलनें के लिए कोई आरक्षण बाधा नहीं बनता, बल्कि अपनी आवाज़ और बात कहनें का हक़ देता है। जातिगत जनगणना आवश्यक है, ताकि लोगों को पता चले कि सदियों से शोषण करती आ रही जातियों के पास आज भी कितना सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक वर्चस्व है तथा देश की कितनी बड़ी आबादी कभी साढ़े 22 फिसदी और कभी 27 फिसदी की हिस्सेदारी के लिए लड़ती है।

नवीन कुमार "रणवीर"




Friday, April 30, 2010

रेलवे कैटरिंग सेवा काट रही जनता की जेब!


प्रति
ममता बनर्जी
रेल मंत्री,भारत सरकार

महोदया,
जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाइटी(जेयूसीएस) को भारतीय रेल से यात्रा करने वाले यात्रियों से खान-पान की वस्तुओं के संबंध में इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड (आईआरसीटीसी) के खिलाफ लगातार शिकायतें मिलती रही हैं। जिसके बाद जेयूसीएस ने एक टीम गठित कर इन शिकायतों की सत्यता जानने की कोशिश की। हमारी टीम ने बलिया से नई दिल्ली तक की यात्रा के दौरान ऐसी शिकायतों को सही पाया। टीम ने स्वतंत्रा सैनानी एक्सप्रेस (2561) की बोगी नम्बर एस-6,(पीएनआर नम्बर-6240235525) में सफर करते हुए जो शिकायतें पायी उसकी तरफ मंत्रालय का ध्यान आकृष्ट कराना जरूरी समझती है। शिकायतें इस प्रकार हैं-
1.पूरे सफर के दौरान पैंट्रीकार के वेटर, चाय का दाम पांच रूपये वसूलते रहे,जबकि रेटलिस्ट में किसी भी तरह की चाय( स्टैंडर्ड चाय और डिप चाय) का दाम पांच रूपये नहीं है। आईआरसीटीसी की रेल लिस्ट में इस चाय का दाम क्रमश: तीन रूपये और चार रूपये दिया गया है। हांलाकि ये रेट लिस्ट भी हमारी टीम को पैंट्री कार में जाकर मिली।
2.पैंट्रीकार के वेटर के पास खासकर चाय-नाश्ता बेचने वाले कर्मियों के पास रेट लिस्ट नहीं पायी गई,जिससे वस्तुओं के दाम को लेकर बरगलाने की कोशिश की जाती है।
3.हमारी टीम द्वारा चाय की रसीद मांगने पर पैंट्रीकार ने जो रसीद उपलब्ध करायी,उसमें टी बैग चाय का दाम जोड़ा गया था,जबकि हमें स्टैंडर्ड चाय दी गई थी। साथ ही उसमें सर्विस टैक्स जोड़ा गया।( चाय का बिल नम्बर-1777,स्वतंत्रता सैनानी एक्सप्रेस,DBG-NDLS-DBG 2561/2562 है। जिस पर सर्विस टैक्स नम्बर AACFH5016PST001लिखा है। कैटरर – मेसर्स एच डी एंड संस) । एक मात्र पेंट्रीकार काउंटर के पास लगी रेट लिस्ट से पता चलता है कि सभी दामों में टैक्स जुड़ा होता है। इस बात की फोन पर शिकायत करने पर नई दिल्ली स्टेशन पर पहुचे अधिकारी ने 6 रूपये वापस कराये और पेंट्रीकार मैनेजर को इस बात के लिए कहा कि तुमने सर्विस टैक्स क्यों जोड़ा। शिकायत की रसीद का नम्बर-178152 है।
4.इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड ने अपनी वेवसाइट पर ‘जागो ग्राहक’ अभियान के तहत सभी बोगियों में रेट लिस्ट स्टीकर लगाने की बात कही है,लेकिन ऐसी कोई सुविधा किसी भी ट्रेन की बोगी में नहीं पायी गई,जिसके कारण यात्रियों में खाद्य पदार्थों के दाम को लेकर हमेशा भ्रम बना रहता है और वेटरों द्वारा मांगे गए दाम ही उन्हें चुकाना पड़ता है।
5.तय मात्रा से कम खाद्य सामान देने की भी शिकायतें आम हैं।
6.पेंट्रीकार के कार्मिकों का पूरा व्यवहार निराशाजनक पाया गया। वे न केवल तय दाम से ज्यादा दाम बताते और वसूलते हैं,बल्कि शिकायत करने पर यात्रियों को धमकाने की भी कोशिश करते पाये गये।
7.पैंट्रीकार मैनेजर से शिकायत पुस्तिका मांगने पर मैनेजर ने शिकायत पुस्तिका देने से इंकार कर दिया। मैनेजर ने टीम के सामने स्वीकार किया कि उसे उपर के अधिकारियों को पैसा देना पड़ता है इसलिए खाद्य पदार्थों के दाम बढा कर लिया जाता है।
8.परोसे जा रहे सामानों की गुणवत्ता कतई संतोषजनक नहीं पायी गई।
9.वेटर से बिल मांगने पर बिल देने में आनाकानी की गई और अंत में सिर्फ एक बिल ही उपलब्ध कराई गई।

महोदया, हमें विभिन्न ट्रेनो में यात्रा करने वाले यात्रियों से कमोबेश ऐसी ही शिकायतें मिलती रही हैं, जिसके बाद जेयूसीएस द्वारा गठित जांच टीम भी इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि भारतीय रेल से रोजाना यात्रा करने वाले करोड़ों यात्रियों से रोजाना इस तरह की लाखों रूपयों की अवैध वसूली की जा रही है। हम मंत्रालय से मांग करते हैं कि इस तरह की अव्यवस्थाओं की स्वतंत्र टीम से जांच कराई जाये। साथ ही यात्रियों के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया भी बनाई जाये ताकि स्टेशनों और ट्रेनों में खान-पान के सामानों से जुड़ी घपलेबाजी पर अंकुश लग
सके।
जांच टीम के सदस्य –
विजय प्रताप-09015898445
ऋषि कुमार सिंह-09313129941
अवनीश राय-09910638355
अरूण कुमार उंराव-09315519877
शाह आलम-09873672153
नवीन कुमार-09717370637

प्रति संप्रेषित-

1.के एच मुनियप्पा
रेल राज्यमंत्री,भारत सरकार
2.ई अहमद
रेल राज्यमंत्री,भारत सरकार
3.चेयरमैन,रेलवे बोर्ड
4.सभी जोन के जनरल मैनेजर
5.संसद सदस्य

जर्नलिस्ट यूनियन फार सिविल सोसाईटी(जेयूसीएस),ई-36,गणेशनगर,नई दिल्ली-92 की तरफ से जारी।

Wednesday, April 7, 2010

बेग़ानी शादी में "मीडिया" दीवाना!

बेग़ानी शादी में "मीडिया" दीवाना! बात शायद इतनी जल्दी समझ में आनें वाली नहीं है, पर दोस्तों आपनें कहावत तो सुनी होगी की "बेग़ानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना"? जी हां आम बोल-चाल में हम में से ना जानें कितनें ही लोग इस कहावत को किसी बेग़ानें(अपरिचित) के किसी की निजी जिंदगी में दखल देनें के संदर्भ में प्रयोग करते है। वास्तविक परिदृश्य में मीडिया विशेषकर इलैक्ट्रोनिक मीडिया आज कल भारतीय टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा और पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी शोएब मलिक की शादी को लेकऱ खासा परेशान है। पता नहीं क्यों? पर परेशान है तो ज़रूर। तभी तो जब से ये ख़बर मिली है कि सानिया मिर्ज़ा कि शादी शोएब मलिक से हो रही है, तभी से चैनलों ने ऐसी तैयारी शुरू कर दी जैसे किसी के घर में विवाह हो उसे शादी के सारे प्रबंध करनें हो। कोई ट्विटर(सोशल नेटवर्किंग साइट) खंगालनें लगा तो किसी नें ओबी हैदराबाद लगा दी। किसी ने शोएब की पहले हो चुकी शादी का खुलासा किया तो किसी नें सानिया के पहले मंगेतर हैदराबाद के उद्योगपति सोहराब मिर्ज़ा के साथ सानिया की सगाई की फोटो पर सोहराब के चेहरे पर शोएब मलिक का चेहरा चिपकाकर ख़बर दिखाई। चैनल फिर भी बाज़ ना आए तो शोएब के धोखेबाज़ होनें के बड़े-बड़े खुलासे किए। शोएब की पहली पत्नी आएशा के साथ शोएब के फोटो दिखाकर खूब रनडाउन भरा। एक कैमरामैन और एक रिपोर्टर ओबी समेत तैनात कर दिए, बिलकुल 26/11 के हमले सरीखे। दिन-रात ख़बरों में ये विवाह-विवाद ऐसे छाया रहा मानों देश में और कोई समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 75 सीआरपीएफ जवानों को नक्सलियों नें मार दिया। पर सानिया विवाह-विवाद का ख़बरों में रहना जरूरी सा लग रहा था। किसी ने धटनास्थल के निकट ओबी लगानें और रिपोर्टर भेजनें की ज़हमत ना उठाई। हिंदी न्यूज़ चैनलों के लिए सानिया की शादी किसी आईपीएल उत्सव से कम थी। आधा काम बाज़ारु क्रिकेट आईपीएल ने कर रखा था, रही सही क़सर सानिया-शोएब के शादी विवाद ने पूरी कर दी। अब भला कहां जगह बचती है रनडाउन में? वहीं दूसरी तरफ हिंदी का ही एक चैनल ऐसा भी था जो कि अपनें स्टूडियों में कुछ (छुटभैय्या) चैनलों के मैनेजिंग एडिटरों को बुलवाकर "सानिया-शोएब के शादी विवाद पर मीडिया की भूमिका" विषय पर चर्चा करके एसएमएस द्वारा जनता की राय मांग रहा था। ये कुछ इस प्रकार लग रहा था जैसे कि शराब और सिगरेट के विज्ञापन उनके टाइटल के साथ किसी अन्य वस्तु के नाम पर दिखाए जाते है, जिसे "सॉरोगेट एड" कहा जाता है। चैनल वहां भी अप्रत्यक्षित रूप से इस ख़बर को महत्व देता नज़र आता दिख रहा था। वरना अपनें प्राइम टाइम में आप एक घंटे तक लोगों को पका रहे है, वो भी मीडिया की तथाकथित नैतिकता के नाम पर? मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि सानिया मिर्ज़ा देश के लिए कितनी महत्वपूर्ण है? टेनिस ना तो हमारा राष्ट्रीय खेल है, ना ही उसमें भारत को क्रिकेट या हॉकी जितनी सफलता मिली है। शायद ये तो सभी जानते हैं कि भारतीय टेनिस को अंतराष्ट्रीय ख़्याति यदि मिली है तो वो लिएंडर पेस और महेश भूपति की वजह से। इन दोनों ने मिलकर और सिंगल्स में भी भारत को ओलंपिक और कई ग्रेंड स्लैम प्रतियोगिताओं में मेडल दिलवाए हैं। परंतु सानिया मिर्ज़ा भारत की "टेनिस सनसनी"(ये मी़डिया का दिया नाम है) कहलाई? विंबल्डन, यूएस ओपन, फ्रैंच ओपन और ऑस्ट्रेलिन ओपन जैसी प्रतियोगिताओं में जिनके प्रदर्शन के बारे में कुछ ना कहे तो ज्यादा बेहतर होगा। लाल बजरी पर तो हमारी तथाकथित टेनिस सनसनी सर्विस रिसीव भी नहीं कर पाती। पर हमारे मीडिया ने सानिया के खेल को लेकर और भारतीय टेनिस के भविष्य को लेकर ख़बरे तो नहीं दिखाई ? लेकिन बला कि खूबसूरत दिखनें वाली इस महिला टेनिस खिलाड़ी को रातोंरात भारतीय टेनिस सनसनी ज़रूर बना दिया। जिससे इन मोहतरमा को हमेशा सुर्ख़ियों में रहनें की आदत सी पड़ गई। क्या भारतीय मीडिया ने इतना महत्व तो भारत को ओलंपिक में मेडल दिलानें वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी और कॉमनवेल्थ में स्वर्ण पदक दिलानें वाली एक और वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी को भी दिया था ? भारत को कॉमनवेल्थ खेलों में पदकों की झड़ी लगानें वाली निशानेंबाज़ अंजली भागवत और एशियाई खेलों में पदक लानें वाली एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज को भी क्या मीडिया नें इतना महत्व दिया था? क्या इन सभी महिला खिलाड़ियों की छींक भी सुर्ख़ियां बनीं थी कभी? इन महिलाओं ने कब शादी की? किस से शादी की? ये किसी को पता भी ना चला होगा। परंतु सानिया मिर्ज़ा की कब सगाई टूटी? कब शादी होगी? किस से शादी होगी? कैसे शादी होगी? जिससे सानिया की शादी हो रही है, उसकी पहले किस से शादी हुई है? और तो और रिपोर्टर मित्र ये भी पूछ रहे हैं कि शादी के बाद सानिया कहां से खेलेंगी? भारत से या पाकिस्तान से? इस सवाल पर जबकि अखिल भारतीय टेनिस संघ भी परेशान नहीं था पर भारतीय इलैक्ट्रोनिक मीडिया, विशेषकर हिंदी चैनल इस ख़बर को लेकर सानिया के गार्जियन की भूमिका में नज़र आ रहे हैं। पहले तो सानिया को टेनिस सनसनी बनाकर टीआरपी बटोरी, फिर सानिया के गार्जियन की तरह पूरी जांच पड़ताल में लगे हैं, कि सानिया कहां रहेगी? शादी के बाद कहां से खेलेगी? ये पाकिस्तानी खिलाड़ी शोएब मलिक उसे खुश रहेगा भी या नहीं? फिर शोएब मलिक की पहली पत्नी आएशा जो कि हैदराबाद(भारत) में ही रहती हैं उसके पिताजी की बाईट ले आए। शोएब हैदराबाद(भारत) आए तो मामला कोर्ट में चला गया। इस बात नें रनडाउन की भूख बढ़ा दी और प्रड्यूसरों नें ट्रेनियों को जान लेना शुरू कर दिया , हर एक घंटे में नया स्टींग प्लेग बनावाओ, टैक्स्ट भी बदलो, नए चैप्टर हैड बनवाओं, बढ़िया फिल्मी गानें के साथ एक भव्य मोंटाज बनवाओ। कुछ चैनलों नें तो जैसे जब भारत कोई क्रिकेट मैच जितता है, तो स्पेशल स्लग और टिकर चलाए जाते है, वैसे ही सानिया के नाम से अलग से टिकर, स्लग और टॉप बैंड बनावकर चलवाए। हर एक घंटे में सानिया-शोएब ब्रेकिंग पट्टी में सच-झूठ के साथ उतरते। सवाल घिरते जा रहे थे कि क्या सानिया-शोएब कि शादी होगी की नहीं? ऐसा लग रहा था कि मानों सानिया-शोएब की शादी राष्ट्रीय समस्या बन गया हो? हुआ कुछ नहीं किसी शोएब की पहली पत्नी आएशा के और सानिया के परिवार के करीबी इमरान क़ादिर (मध्यस्थ) नें मामला रफ़ा-दफ़ा करवा दिया और मीडिया को बता दिया कि शोएब ने आएशा को तल़ाक दे दिया है और सानिया शोएब की शादी निर्धारित 15 अप्रैल 2010 को ही होगी। अब मीडिया फिर "तू कौन?... मैं ख़ामैख़ा" कि स्थिति में नज़र आया। चैनलों ने इतनें दिन खर्चा किया और मिला कुछ भी नहीं? कम से कम एक सप्ताह की टीआरपी तो मिल जाती? ख़ैर इस मामले से सानिया-शोएब के परिवार वाले तो सावधान हो ही गए होंगे। अब देखना ये भी है कि15 अप्रैल 2010 को होनें वाली सानिया-शोएब की शादी की तैयारियों लिए दोनों परिवारों के साथ हिंदी न्यूज़ चैनल भी किस नई योजना के साथ उतरेंगें देखना दिलचस्प होगा।





Saturday, March 13, 2010

"अबला" का सम्मान

अबला क्यों कहा किसी नें,
ये कभी ना जान पाई वो?
जिसे जना कोख से,
उसे ही ना पहचान पाई वो?
लूटाती रही उसीपर अपना सब कुछ
खुद के लिए कुछ ना बचा पाई वो...
अपना सब कुछ देकर भी
कुछ ना किसी से मांग पाई वो?
हमेशा देना ही सीखा उसनें
दूसरों में ही अपनी जान पाई वो...
वो खुद के लिए भी ना बनीं कभी
समाज में किसी ना किसी से पहचान पाई वो...
कभी किसी की मां, कभी बेटी, कभी बहू,
कभी बहन, तो कभी पत्नी
बस यही कुछ नाम पाई वो?
खुद को दूसरों पर आश्रित देखना
यही इतनी ही पहचान पाई वो...
इसीलिए समाज में अबला खुद को
हमेशा जान पाई वो...
मांगा कभी जो हक़ उसनें
चरित्रहीनता का मान पाई वो...
कहां कभी जो गलत-सही तो
अपनों से ही अपमान पाई वो,
लांघीं कभी जो घर की चौखट
फिर ना कभी सम्मान पाई वो...
इसीलिए समाज में अबला खुद को
हमेशा जान पाई वो...
ज्ञान-गुणों की इस दुनिया में,
अपनी-सी पहचान पाई वो...
चूल्हा-चौका, कपडे-लत्ते, बर्तन-भांडों
से सम्मान पाई वो...
अपनी ही कोख से हमेशा
तिरस्कार और अपमान पाई वो....
इसीलिए समाज में अबला खुद को
हमेशा जान पाई वो...
देवी बनकर दीवार पर टंग जाती
तो कभी चौकी पर मूरत में टिकती
बस इतना ही एहसान पाई वो...
ना कहे किसी से, ना रोके किसी को
दिल में ना अरमान पाई वो...
इसीलिए समाज में अबला खुद को
हमेशा जान पाई वो...।

Tuesday, February 23, 2010

पटना "महादलित रैली" भाग-2

बिना ठोर के वोट पर आश्रित जनता...

ऐसे भी खुश रहते है मुझ जैसे लोग...


खिलता बचपन...नेताओं की रैलियों में खेलता बचपन...



आज का ठिकाना...बांधा आशाओं का आशियाना...




चल चले अपनें घर...


दोस्तों,

21 फरवरी 2010 को मेरा किसी काम से पटना जाना हुआ। सड़को पर भीड़-भाड़ देखकर मैं समझ गया था , कि गांधी मैदान में कोई रैली होगी। समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है? फिर जमाल रोड़ से स्टेशन होते हुए मुझे कंकड़बाग जाना था। रिक्शे में जाते समय मैनें देखा कि लोगों की भीड़ ज्यादा होती जा रही थी। शहर की दीवारों पर पोस्टर दिन की कहानी बयां कर रहे थे। "महादलित एकजुटता रैली" गांधी मैदान, पटना। मेरा अंदेश सही निकला, गांधी मैदान कई बार सुना-भाला था, जैसे दिल्ली का रामलीला मैदान अजमेरी गेट, दोनों ही रैलियों के मशहूर हैं। जाना तो चाहता था मैं वहां, फिर लगा कि पहले काम खत्म कर लूं फिर तसल्ली से जाऊंगा। शाम होते समय नहीं मिल पाया सूरज ढलनें के बाद जान हो पाया, रैली तो खत्म हो चुकी थी, मतलब नेता लोग जा चुके थे। पर राज्य भर में कहां-कहां से आए "महादलित" जिनमें की विशेषकर 21 जातियों के लोग थे। इन घुमंतू जातियों का कोई ठोर नहीं, जिनमें बंजारे, नट, अग्यारह (कंजर) सपेरे, (खानाबदोश) जैसी निम्न पायदान पर समझी जानें वाली जातियां शामिल है। हालांकि दलितों में सभी जातियां समाज के अन्य वर्गों द्वारा घृणा का पात्र बनीं रहती है। परंतु उनके पास समाज में मुख्यधारा में रहते हुए गुज़र-बसर करनें के साधन रहते है, जैसे चमड़े का काम करना, नालियों का मल साफ करना, नदी पार करवा देना, कपड़े धो देना आदि। जिन जातियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महादलित की श्रेणी में दिखानें की कोशिश कर रहे हैं। उनकी स्थिति ज्यादा बुरी है, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन ये मानकर नहीं चला जा सकता कि जिन जातियों का मैनें उल्लेख किया है उनका समुचित विकास हो चुका है या वो समाज की मुख्यधारा में स्वंय को शिक्षा,रोज़गार, स्वास्थ्य से पूर्ण रूप से जुड़े हैं। दलित समाज को बांटकर और एक लड़ाई को अंजाम तक पहुचाएं बिना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक नई लड़ाई की ज़मीन तैयार करके दलितों की ताकत को तोड़ना चाहते हैं। ये स्थिति बिल्कुल वैसी ही प्रतीत होती है, जैसे सवर्ण वर्ग के पुरोधाओं नें शूद्रों में आनें वाली सभी जातियों में विभाजन किया छूत और अछूत का किया। जिन जातियों से छूत(छूनें) से सेवा लेनी थी, उन्हें समाज में अछूतों से भिन्न कर दिया। ग्वाला(यादव-गुर्जर), गडरिया(बघेल), कुम्हार(गोला), माली(सैनी),तेली(तथाकथित ठाकुर),नाई, कुरमी, किसान(जाट)। थे सभी सेवक वर्ग यानि की ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य तो नहीं थे ये सभी? सेवक वर्ग यानि की शूद्र। इनका विभाजन करके इन्हें दलितों से अलग किया लेकिन इनकी स्थिति में उस अनुपात में बदलाव नहीं आए थे, जिस स्थिति में सवर्ण वर्ग था। तभी तो पिछड़ों को आरक्षण की मांग उठी और मंडल-कमंडल में ठनी। तो ऐसी स्थिति ना हो इसके लिए नीतीश बाबू को दलित वर्ग को बांट कर उसके कल्याण की नहीं सोचनी चाहिए, नहीं तो कल फिर कोई वर्ग फिर विभाजन के कगार पर खड़ा हो अपनें हक़ की मांग करेगा। सामजिक जो स्थिति है उसे देखते हुए निम्न समझी जानें वाली जातियों में पिछड़े भी हैं और दलित भी अब दलित और महादलित का नया की नई रेखा खींच कर पता नहीं कौन सी सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं नेताजी। एक गाड़ी को मंजिल तक पहुचाऐ बिना उसके डिब्बों को अलग करके नई लाईन काहे बिछा रहे हैं। सामाजिक क्रांति के आधूरे सफर में नई लड़ाई की शुरुआत करके दलितों की ताकत को कम करना समझा जाए कि किसी जाति विशेष के नेता को लेकर आप किसी सामाजिक चेतना को अंजाम देनें के बजाय उसे तोड़कर सत्ता पाना चाहते हैं?




पटना "महादलित रैली"...

इस रैली से इसे क्या उम्मीद है?

जुगाड़ की राजनीति में जुगत...

"नेताजी की जिंदाबाद..."

इनका जिंदा रहना जरूरी है...




यहां भी धुमंतों, आज का डेरा...कौन जानें कब हो पटना फेरा...



एक जुटता के नाम पर दलित समाज का विखंडन