Tuesday, October 26, 2010

हेल्थ और वेल्थ के बीच पिसा “कॉमन”



दिल्ली में हाल ही में सम्पन्न हुए कॉमनवेल्थ गेम्स का जश्न आप सभी ने
देखा होगा, कितना भव्य स्टेडियम, कितनी भव्य आतिशबाज़ी और कितना रंगारंग
कार्यक्रम, वाह! इस आयोजन पर हर किसी भारतीय को गर्व होगा। बात भी ठीक है
बेटी का ब्याह ठीक से हो जाए तो सभी घरातियों(लड़की वालों) को गर्व करनें
का अधिकार तो होता ही है। पर आज हम इस आयोजन की भव्यता की या कामयाबी की
बात नहीं करेंगे। हम बात करेंगे, सीडब्लूजी के मुख्य आयोजन स्थल जवाहर
लाल नेहरु स्टेडियम की भव्यता को गेम्स तक बनाए रखनें में योगदान देनें
वाले सफाईकर्मियों की या अंग्रेजी में कहे तो हाऊस कीपिंग स्टाफ की। इस
स्टाफ को तीन महीनें के लिए गुड़गांव की किसी एटूजेड नाम की कंपनी ने रखा
था। नियुक्ति के समय वादा किया गया किया गया कि 8 घंटे की शिफ्ट होगी और
5200 कुछ रु प्रतिमाह के हिसाब से मिलेगा। लेबर(सफाईकर्मियों) को खाना घर
से लाना है जिसके बदले आपको 750 रु खानें के अलग से दिऐ जाऐंगे चाय-पानी
कुछ नहीं। सुरक्षा कारणों के चलते मज़दूरों को ज्यादा दिनों तक खाना नहीं
लानें दिया गया। एक दिन में कोई ऐसा समय नहीं था जब हाऊस कीपिंग स्टाफ ने
अपने काम में चोरी की हो। बल्कि मुझे यह कहते हुए कोई शक-शुब़ा नहीं है
कि सबसे ज्यादा काम यदि कोई करता दिखता था तो, वो थे विदेशी कर्मचारी और
हाऊस कीपिंग स्टाफ। लोग आते-जाते रहते पर मैनें इन्हें हमेशा अपना काम
पूरी निष्ठा से करता पाया, ये बेचारे तो किसी आने-जानें वाले को मना भी
नहीं कर सकते थे कि “अभी पोछा लगाया आप ज़रा इधर से चले जाऐ”। हर एक घंटे
में कीट-पतंगों का ढ़ेर स्टेडियम के किसी कोनें को भी नहीं छोड़ता था।
कुछ पल बाद ही टिड्डे और तितलियों की संख्या सैंकडों से लाखों में हो
जाती थी, रात के समय तो मत पूछिए पलक झपकाना तक मुश्किल था। परंतु ऐसी
विकट स्तिथि में भी इन सफाईकर्मियों नें अपना काम पूरा किया वो भी निष्ठा
और ईमानदारी से। रोज़ सुबह मीडिया लॉंज, फोटों और प्रेस वर्क रूम कि सफाई
करनें वाली राधा का कहना था कि हर रोज़ उन्हें खानें को लेकर एक संघर्ष
करना होता है कभी खाना खराब आता है तो कभी आता ही नहीं है, कभी आता है तो
हमें खानें का समय ही नहीं मिल पाता और खाना खत्म हो जाता है। दरअसल
खानें को लेकर मामला क्यों इतना बिगड़ा आपको बताते है। आयोजन समिति ने
जेएनएल में खानें का ठेका पहले अग्रवाल फूड प्रोड्क्ट्स लि.(वर्क फोर्स
के लिए) को दिया, बाद में ये काम गोयल फूड(वर्कफोर्स और वॉलेन्टियर्स) को
दिया गया। वीआईपी लोगों के लिए खानें का ठेका ग्रेविस को दिया गया, अन्य
स्टेडियमों में वीआईपी लोगों के लिए खानें का ठेका लॉरेंस रोड़ दिल्ली के
सेवन सीज़ को दिया गया और दर्शकों के खरीद कर खाने के लिए स्टाल लगानें
का ठेका फास्ट ट्रैक को दिया गया, दिल्ली के मशहूर “नाथूज” को यमुना
स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में खानें का ठेका मिला और गेम्स विलेज में 5
सितारा होटल को खानें का काम दिया गया। आयोजन समिति की तरफ से अन्य
वेन्यूज़ पर अन्य कंपनी को खानें काम सौपनें पर भी खानें को लेकर वर्क
फोर्स को हमेशा से शिकायते मिलती रही। इसमें कोई दो राय नहीं कि खाना
ख़राब आ रहा था वो भी सप्ताह में पांच बार। जेएनएल में हाऊस कीपिंग स्टाफ
के लोगों को जब खाने को लेकर हड़ताल करनी पड़ी और काम रोक दिया गया तो
एटूजेड कंपनी नें आनन-फानन में अपनें से बीकानेरवाला के “आंगन” की पैक्ड
थाली मंगवाना शुरु कर दिया। पेट की भूख के लिए लड़ते सफाईकर्मियों को कम
से कम एक थाली भोजन से तो संतुष्टी मिली थी। दो दिन बाद नवरात्र शुरु हो
गए हमारी भारतीय महिला बेचारी किसी भी स्थिति में भगवान को नहीं भूलती
सुबह से शाम तक स्टेडियम में सफाई का काम करनें वाली राधा जैसी ना जानें
कितनी महिलाएं व्रत में रहते हुए भी अपना काम पूरी निष्ठा से करती। शाम
को एक कप चाय पीनें के लिए मुझसे सुबह की सफाई के समय ही कह देती कि
“मेरा व्रत है सर शाम को एक कप चाय के लिए बोल दिजिएगा मीडिया लॉंज में
वे लोग हमें मना कर देते है”। मुझे लगता कि जिसकी जितनी मेहनत है उसे
उतना क्यों नहीं मिलता है? सफाईकर्मियों की भांति विदेशी इंजीनियरों की
एक बात की तारीफ करनी होगी वे लोग अपना सारा काम स्वंय करते थे, इतनी
बड़ी-बड़ी लाईटों और ट्रांसमीटरों को वे स्वंय से उंची जगहों पर चढ़ाते
और उनकी सेटिंग करते वो भी बिना किसी लेबर के। ख़ैर हम बात कर रहे थे
हाऊस कीपिंग की उनके लिए खाना तो आनें लगा बीकानेरवाला, मुझे बड़ी खुशी
हुई कि चलों इन्हें तो हम से अच्छा खाना मिल रहा है। पर बाद में पता चला
कि एटूजेड कंपनी वालों अपनें कर्मचारियों(सफाईकर्मियों) के वेतन से खानें
का साला पैसा काट लिया है। जबकि हाऊस कीपिंग स्टाफ का कहना है कि कंपनी
ने पहले कहा था कि 5200 कुछ रुपयों के वेतन के अलावा आपको खानें के पैसे
अलग से दिए जाएंगे यदि नहीं मिला खाना तो। पहले तो खाना मिला नहीं, बाद
में खाना खराब आनें लगा और जब सही आया तो पैसे काट लिए गए। क्लोजिंग
सेरमनी में राधा ने बताया कि कंपनी ने 4400 रु देनें की बता कही है और
कहा है कि बाकि पैसे आपके खानें के काट लिए गए है...। वाह रे मेरे
कॉमनवेल्थ! पूरे दिन मेहनत करनें वालों को ना खाना ढंग का दिया ना पानी
और काम खत्म हुआ तो तनख्वा भी काट ली? क्या बताएं कौन सा कॉमनवेल्थ,
किसकी हेल्थ और किसकी वेल्थ!


नवीन कुमार "रणवीर"
09717370637

No comments: