Friday, April 3, 2009

'मंडलियों' का नया मंडल

लालू-मुलायम-पासवान का गठबंधन भारतीय राजनीति के लिए क्या संदेश देगा ये तो हमें बाद में पता चलेगा, लेकिन ऐसी क्या जरुरत पड़ी कि आपातकाल के समय के ये तीन समाजवादी, मंडल के बाद आज एक मंच पर साथ दिख रहे हैं? राजनीतिक जानकारों का मानना था कि ये कोई नई खिचड़ी पक रही है, कोई समाजवादी खिचड़ी? जेपी-लेहिया के चेलों का ये नया समाजवाद प्रतीत हो रहा था, जिसमें प्रणय सूत्र बनें थे अमर सिंह. पर हमारे राजनीतिक जानकार क्या जानें राजनीति! भैय्या सही भी है जिसका काम उसी को साझे, मतलब नेताओं कि माया नेता ही जानें... माया से याद आया कि कहीं ये माया फीयर-फैक्टर तो नहीं? पता नहीं लेकिन हमारे कुछ पत्रकार मित्र इसे चौथे मोर्चे का नाम देनें लगें, और कुछ मंडल के दौर का नया प्रारूप बतानें में लगे...लेकिन सच तो शुक्रवार लखनऊ में हुई प्रेस कॉन्फेंस में सामनें आया जब लालू-मुलायम-पासवान ने साझा तौर पर ये बताया कि हमारा ये गठबंधन कोई यूपीए से अलग नहीं हैं, हम तो स्वंय में यूपीए हैं, यूपीए को चलाने वाले लालू-पासवान और यूपीए को बचानें वाले मुलायम-अमर दोनों तो यहां मौजूद हैं तो यूपीए से अलग होनें की बात नहीं हैं।

भाई ये नए समाजवाद का उदय था, जब आप प्रेस कॉंफेंस को देखते तो आपको ऊपर लगे समाजवादी पार्टी के बोर्ड पर लोहिया और मुलायम की तस्वीर के नीचे अमर सिंह और संजय दत्त थे। खैर हमें क्या मुलायम की पार्टी वो चाहें तो अमर सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाएं और संजय को महासचिव, लेकिन पुरानें और नए समाजवादियों के बीच हुए इस समझौते के कारण केवल माया फियर-फैक्टर ही नजर आता दिखाई पड़ रहा हैं, जेपी आंदोलन औप लोहिया की समग्र क्रांति से अपनें राजनीतिक जीवन की शुरुआत करनेवाले लालू-मुलायम-पासवान नब्बे के दशक के आते-आते मंडल के समय में अपनें राजनीतिक यौवन पर रहे, जिसका लाभ उन्हें आज तक मिल रहा है, नब्बे के बाद तीनों ने खुद को अपने राज्य और निर्धारित वोट बैंक तक सीमित कर लिया. लालू बिहार में पिछड़ों और मुसलमानों के सबसे बड़े हितेषी बनें और बिहार में पंद्रह साल राज किया, पासवान बिहार में दलितों और मुसलमानों के डीएम फैक्टर के तले कई हर बार केंद्र में मंत्री रहे सरकार चाहे किसी कि भी हो लेकिन पासवान जी को मंत्री पद जरूर मिलता, और यूपी में मुलायम सिंह ने भी यादव-मुस्लिम समीकरण के चलते यूपी में हमेशा लाभ लिया, और यूनाइटेड फ्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री जैसे अहम पद पर भी रहे. सीधी सी बात ये है कि इन तीनों नेताओं ने अपने-अपने राजनीतिक आस्तित्व को अपने राज्य और वोट बैंक के आधार पर ही केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर ही बढ़ाया, किसी लोहिया-जेपी की विचारधारा के नाम पर नही, वहीं इनके साथ चले खाटी समाजवादी जार्ज फर्नांडिज, सुरेंद्र मोहन आज कहां है आप हम सभी जानते हैं। खैर ये तो हम सभी जानते हैं कि इस गठबंधन के पहले लालू-पासवान की बिहार विधानसभा चुनावों में कितनी दोस्ती थी जिसका लाभ एनडीए को मिला। और समाजवादी पार्टी जानती है कि जो स्थिति बिहार में उनकी है, वही स्थिति लालू-पासवान की यूपी में है और यूपी के दलित वोट बैंक को तोड़नें के लिए पासवान एक विकल्प हो सकते हैं...लालू के साथ आनें से समाजवादी पार्टी को यूपी में तो खासा लाभ नहीं मिलेगा पर बिहार में शायद उपस्थिति मिल जाए। लेकिन ये सारी कवायद किस लिए हैं इसका शायद इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुलायम को भी पता है कि इस बार के आम चुनावों में उनका वो जलवा नहीं दिख पाएगा जो कि पिछले लोकसभा चुनावों में दिखा था क्योंकि राज्य में सरकार का जो लाभ वो पिछले लोकसभा चुनावों में ले गए थे इस बार वो संभव नहीं है, न तो राज्य में सरकार उनकी है और न ही बाहुबलियों का साथ। यही स्थिति कुछ लालू-पासवान की भी है, हालांकि ये बात भी छिपी हुई नहीं है कि यूपी की मुख्यमंत्री मायावती का कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा है औऱ इन तीनों नेताओं का कम हुआ है। आज इन सभी नेताओं को यूपी, बिहार, झारखंड की कुल सीटों का एक साथ अनुमान लागाना पड़ रहा है क्योंकि डर है कि कहीं मायावती की सोशल इंजीनियरिंग इनके वोट बैंक में सेंध लगाए उससे पहले हम सभी केवल धर्मनिर्पेक्षता के नाम पर ही एक हो जाते है शायद थोड़ा लाभ मिल जाए, लालू-पासवान भली-भांति जानते हैं कि बिहार विधान सभा चुनावों वाली गलती दोहरानें से घाटा उन्हें ही उठाना पड़ेगा और लाभ इस बार एनडीए को नहीं तो मायावती को मिल सकता है, इसलिए राजनीति में कोई बैरी-बंधु नहीं के सिद्धातों के तले इस समझौते को परवान चढ़ाया। खैर पल-पल बदलते इस राजनीतिक घटनाक्रम में मैडम माया ने अपने पत्ते अभी खोले नहीं हैं देखना ये हैं कि आने वाले कल में हमें कौन से नए राजनीतिक समीकरण देखनें को मिलेंगे

नवीन कुमार 'रणवीर'

1 comment:

Unknown said...

इस बार मायावती की सोशल इंजिनियरिंग धरी की धरी रह जाएगी। जिस तरीके से उसने बाहुबलियों का महिमामंडन किया है। उसको अपनी ये गलती बहुत महंगी पडेगी। कुछ ऐसी ही गलती मुलायम सिंह ने अपने राज में की थी। जिसकी सजा उनको यूपी की जनता ने दी थी।