Tuesday, February 23, 2010

पटना "महादलित रैली" भाग-2

बिना ठोर के वोट पर आश्रित जनता...

ऐसे भी खुश रहते है मुझ जैसे लोग...


खिलता बचपन...नेताओं की रैलियों में खेलता बचपन...



आज का ठिकाना...बांधा आशाओं का आशियाना...




चल चले अपनें घर...


दोस्तों,

21 फरवरी 2010 को मेरा किसी काम से पटना जाना हुआ। सड़को पर भीड़-भाड़ देखकर मैं समझ गया था , कि गांधी मैदान में कोई रैली होगी। समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है? फिर जमाल रोड़ से स्टेशन होते हुए मुझे कंकड़बाग जाना था। रिक्शे में जाते समय मैनें देखा कि लोगों की भीड़ ज्यादा होती जा रही थी। शहर की दीवारों पर पोस्टर दिन की कहानी बयां कर रहे थे। "महादलित एकजुटता रैली" गांधी मैदान, पटना। मेरा अंदेश सही निकला, गांधी मैदान कई बार सुना-भाला था, जैसे दिल्ली का रामलीला मैदान अजमेरी गेट, दोनों ही रैलियों के मशहूर हैं। जाना तो चाहता था मैं वहां, फिर लगा कि पहले काम खत्म कर लूं फिर तसल्ली से जाऊंगा। शाम होते समय नहीं मिल पाया सूरज ढलनें के बाद जान हो पाया, रैली तो खत्म हो चुकी थी, मतलब नेता लोग जा चुके थे। पर राज्य भर में कहां-कहां से आए "महादलित" जिनमें की विशेषकर 21 जातियों के लोग थे। इन घुमंतू जातियों का कोई ठोर नहीं, जिनमें बंजारे, नट, अग्यारह (कंजर) सपेरे, (खानाबदोश) जैसी निम्न पायदान पर समझी जानें वाली जातियां शामिल है। हालांकि दलितों में सभी जातियां समाज के अन्य वर्गों द्वारा घृणा का पात्र बनीं रहती है। परंतु उनके पास समाज में मुख्यधारा में रहते हुए गुज़र-बसर करनें के साधन रहते है, जैसे चमड़े का काम करना, नालियों का मल साफ करना, नदी पार करवा देना, कपड़े धो देना आदि। जिन जातियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महादलित की श्रेणी में दिखानें की कोशिश कर रहे हैं। उनकी स्थिति ज्यादा बुरी है, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन ये मानकर नहीं चला जा सकता कि जिन जातियों का मैनें उल्लेख किया है उनका समुचित विकास हो चुका है या वो समाज की मुख्यधारा में स्वंय को शिक्षा,रोज़गार, स्वास्थ्य से पूर्ण रूप से जुड़े हैं। दलित समाज को बांटकर और एक लड़ाई को अंजाम तक पहुचाएं बिना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक नई लड़ाई की ज़मीन तैयार करके दलितों की ताकत को तोड़ना चाहते हैं। ये स्थिति बिल्कुल वैसी ही प्रतीत होती है, जैसे सवर्ण वर्ग के पुरोधाओं नें शूद्रों में आनें वाली सभी जातियों में विभाजन किया छूत और अछूत का किया। जिन जातियों से छूत(छूनें) से सेवा लेनी थी, उन्हें समाज में अछूतों से भिन्न कर दिया। ग्वाला(यादव-गुर्जर), गडरिया(बघेल), कुम्हार(गोला), माली(सैनी),तेली(तथाकथित ठाकुर),नाई, कुरमी, किसान(जाट)। थे सभी सेवक वर्ग यानि की ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य तो नहीं थे ये सभी? सेवक वर्ग यानि की शूद्र। इनका विभाजन करके इन्हें दलितों से अलग किया लेकिन इनकी स्थिति में उस अनुपात में बदलाव नहीं आए थे, जिस स्थिति में सवर्ण वर्ग था। तभी तो पिछड़ों को आरक्षण की मांग उठी और मंडल-कमंडल में ठनी। तो ऐसी स्थिति ना हो इसके लिए नीतीश बाबू को दलित वर्ग को बांट कर उसके कल्याण की नहीं सोचनी चाहिए, नहीं तो कल फिर कोई वर्ग फिर विभाजन के कगार पर खड़ा हो अपनें हक़ की मांग करेगा। सामजिक जो स्थिति है उसे देखते हुए निम्न समझी जानें वाली जातियों में पिछड़े भी हैं और दलित भी अब दलित और महादलित का नया की नई रेखा खींच कर पता नहीं कौन सी सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं नेताजी। एक गाड़ी को मंजिल तक पहुचाऐ बिना उसके डिब्बों को अलग करके नई लाईन काहे बिछा रहे हैं। सामाजिक क्रांति के आधूरे सफर में नई लड़ाई की शुरुआत करके दलितों की ताकत को कम करना समझा जाए कि किसी जाति विशेष के नेता को लेकर आप किसी सामाजिक चेतना को अंजाम देनें के बजाय उसे तोड़कर सत्ता पाना चाहते हैं?




2 comments:

विजय प्रताप said...

रिपोर्ट के साथ तस्वीरें भी अच्छी(खिंची) लगी.

नई राह said...

kafi gambhir mudde ko uthaya aapne yeh hamare desh ki vote bank ki rajnit hai sir ji yeh nitish babu hi nahi desh k tamam neta chahe wo ram vilaas paaswaan ho ya mayawati ho har koi dalit k naam per apni rajnit ki rotiya sekne me lga hua hai...