बिहार की राजधानी पटना के निकट बिहटा में छात्रों नें श्रमजीवी एक्सप्रेस की एसी बोगियों को आग लगा दी। ऐसी खबर मिल रही थी टेलीविजन चैनलों के हवाले से। ज्यादा अपडेट के लिए इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि पत्रिका डॉट कॉम का कहना है कि दो ट्रेनों श्रमजीवी एक्सप्रेस और संघमित्रा एक्सप्रेस दोनों की मिलाकर 11 बोगियों को आग के हवाले किया गया है। खैर कितनी बोगियों और ट्रेनों को जलाया गया है ये शायद बाद में पता चलेगा, लेकिन आज(घटना के दिन) अभी तक तो ये ही तथ्य निकल रहे हैं। इस मामले के बारे में ये भी कहा जा रहा है कि श्रमजीवी एक्सप्रेस के एसी कोच में सफर कर रहे छात्रों से जब आरपीएफ के जवानों ने टिकट मांगा तो छात्रों और आरपीएफ के जवानों के बीच कुछ तनातनी हुई। बात आगे बढ़ी तो छात्रों को शांत करनें के लिए आरपीएफ के जवानों ने उन्हें खदेड़नें के लिए लाठी चार्ज किया, जिस पर छात्रों के विरोध ने बड़ा रूप ले लिया जिसके जवाब में आरपीएफ के जवानों को फायरिंग करनी पड़ी जिसमें एक छात्र की मौत हो गई। इसके बाद छात्रों नें ट्रेन जलाई।
दोस्तों तो कुछ ऐसे ये मामला प्रथम दृश्ट्या में सामनें आता है। दोस्तों ममता बैनर्जी के रेल मंत्री बननें के बाद ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि बिहार में ट्रेन जलाई गई हो या ट्रेनों को रोका गया हो। मामला चाहे स्टेशन खत्म करनें का हो या ट्रेनों के रूट बदलनें का, बिहार के लोगों को शायद बिहार में बाढ़, सूखा, बेरोजगारी, पलायन, कुपोषण, जातीय शोषण आदि से बड़ी समस्या रेलवे नज़र आती है। ट्रेनों को लेकर जितनें संजीदा हमारे बिहारी नौजवान है, उतनें शायद किसी और राज्य के नहीं? रेल मंत्रालय मिले तो बिहार को मिले? रेल के रूट बिहार से होकर जाए? ये सोच किसने दी? क्या और समस्या नहीं है मेरे बिहार में? क्या बिहार देश के किसी अन्य राज्य को कोई ऐसी सामग्री भेजता हैं जिससे कि राज्य के किसान या नागरिको की गुज़र बसर चलती हो? क्यों हर बार बलवा रेलवे को लेकर ही होता है? कई बड़े अखबारों के संपादकीय में मैनें बिहार से सरोकार रखनें वाले पत्रकारों, साहित्यकारों, जिनकी कर्मभूमि दिल्ली ही रही होगी, उन्हें दिल्ली की बुराई करते हमेशा देखता हूं। दिल्ली के लोगों के बारे यहां कि संस्कृति,लोगों के आचरण, सभी पर खुलकर बात करते हैं। बेबांकी से कहते हैं कि दिल्ली के लोग साले किसी की मदद नहीं करना जानते। कोई अपनें कोलकाता के दौरे का प्रसंग बताता है, तो कोई अपनें डीटीसी बस में किसी व्यक्ति द्वारा केवल सही पता बतानें पर इस बात से गौरवांवित हो जाते हैं कि वो व्यक्ति बिहार का था, "साल कोई दिल्ली का होता तो हमें गलत पता बता देता"। फिर मुझे 23 जुलाई 2009 को पटना में 22 वर्षीय महिला के सरे आम कपड़े उतरावानें की घटना याद आती है तो उससे संबंधित लेखों को खंगालनें की कोशिश करता हूं, ब्लॉग के मुहल्लों और कस्बों की गलियों से भी गुजरता हूं। लेकिन हर जगह बड़े शहरो औऱ वहां की संस्कृति, वहां के लोगों के व्यवहार और बड़े शहरो(विशेष तौर पर दिल्ली) की लड़कियों के चरित्र का तो केवल कपड़े पहननें भर से उल्लेख ही मिल जाता हैं उन्हें। लेकिन, कभी मेरे इन दोस्तों नें इस बारे में सोचा है कि क्या कारण है कि लोकतंत्र के चारों स्तंभों संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता में हमारे इसी राज्य(बिहार) के लोगों की भरपूर है, बल्कि यूं कहें की अन्य राज्यों से ज्यादा भागीदारी है। नेतागिरी की तो बात ही क्या 40 लोकसभा में सीट हैं और 4000 नेता दावेदार और सभी सक्षम। आई.ए.एस बननें वालों और बनानें वालों में भी कोई मुकाबला नहीं है। न्यायपालिका एक स्वत्रंत इकाई है इस पर मैं टिप्पणी नहीं करुंगा, इसमें भी उपस्थिति बतानें की जरूरत नहीं। अब आता है लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता, इसके बारे में तो मेरे पत्रकार मित्रों को कुछ बताना मेरे लिए छोटा मुंह और बड़ी बात होगी। क्योंकि मुझे भी किसी राज्य विशेष से जोड़कर देखेंगें। पत्रकारिता में कितनें मित्र बिहारी हैं इसकी यदि पड़ताल की जाए तो शायद बिहार की इसमें भी बाजी मार लेगा। अब सवाल ये उठता हैं कि मरे देश के जिस राज्य की उपस्थिति लोकतंत्र के चारों स्तंभ में अग्रणी हो उसी राज्य से काम की तलाश में होनें वाला पलायन सबसे ज्यादा हो ? क्या मेरे उस राज्य के पास अपनें नागरिकों को खिलानें के लिए दो जून की रोटी भी नहीं? क्या मेरे उस राज्य के तंत्र में केवल सूर्य ग्रहण को देखनें भर के लिए सारी सुविधा देनें का प्रावधान है? या केवल छठ पूजा के लिए नहानें का प्रबंध कर देनेभर के लिए लोग वोट डालते हैं? क्या मेरे उस राज्य की जनता केवल इसलिए वोट डालती है कि कोई नेता इसी राज्य का फिर से रेल मंत्री बनेगा और हमारे लिए अन्य राज्यों के बड़े शहरों के लिए गाड़ी चला देगा? दरअसल शायद बिहार के नेताओं की ये सोच बनी हुई है कि यदि हम राज्य में हुए तो केंद्र को दोष देंगे और यदि केंद्र में हुए तो रेल मंत्रालय मांग कर रेल गाडी चला देंगे। जिससे ये होगा कि कल को यदि हम केंद्र में न रहे तो क्या राज्य के लोगों को अपनें द्वारा चलाई गई गाड़ियों में बिठा कर कह देंगे कि देखों न हमनें जो काम किया है वो कहां कोई कर पाता। यहां कुछ नहीं है, हमसे कुछ नहीं मांगिऐं, केंद्र ने कुछ नहीं दिया है, सूखा है, बाढ़ आ गई है सब बर्बाद हो गया है और मेरे इस राज्य की गरीब जनता फिर बड़े शहरो की और रोजी-रोटी के लिए जाती हैं और किसी राज ठाकरे, बाल ठाकरे या उल्फा का शिकार बनती है। जो राज्य देश के विकास में इतनी अहम भूमिका अदा करता है, जो राज्य ने देश को चलानें के चारों पहियों को सबसे ज्यादा मजबूती प्रदान करता है उसी राज्य को क्यों ये सब कुछ झेलना पड़े ? इस सवाल शायद मेरे पत्रकार, साहित्यकार, विचारक और बुद्धिजीवी मित्र सोचे और इस पर एक बड़ी बहस खड़ी करे और राज्य-केंद्र सरकार से जवाब मांगे? राज्य के नेताओं से जवाब मांगे जो कि अन्य राज्य के लिए केवल ट्रेन भर चलवा कर नागरिकों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। ताकि वो अपनी दुकानदारी जमा सके और मेरे राज्य के गरीब नागरिक किसी और राज्य में जाकर किसी राज ठाकरे या बाल ठाकरे के हाथों पिटाई खाऐ और बिहार के नेताजी अपनी बाईटों में बिहारियों के हित की बात करते हैं। हमारे पत्रकार मित्र अखबारों के संपादकीय में, न्यूज़ चैनलों की स्पेशल रिपोर्टों में और ब्लागों के कस्बों, मुहल्लों और गलियारों में फिर किसी बड़े शहर के नागरिको का चरित्र -चित्रण करें। मेरे पत्रकार मित्रों को बीस-बीस साल किसी बड़े शहर में काम करते हो जाते हैं, अपनें जीवन के महत्वपूर्ण दिनों को संजों कर वो किसी बड़े शहर में कमाते हैं और अपनें बिहार को केवल छठ मईय्या के बुलावे पर चले जाते हैं और आजकल तो वो भी वही मनानें लग गए हैं। रोटी-रोजगार, तीज-त्यौहार सबही तो कर लेईबे, बढ़िया गाड़ी, मकान सब कुछ दिए रहिन ई शहर, घर अब काहे जाईबै? काहे कलम घिसत हो भाई लोग? गर कुछ करनें का जज़्बा हो तो बड़े शहरों के लोगों का चरित्र-चित्रण करना बंद करों और इन सभी बातों पर गौर करो। सड़के बना देनें भर को विकास मान लेना और बिहार को ब्रांड बननें के रूप में महिमा मंडित करने भर से समस्या हल नहीं होगी। अगर हम ढ़ूंढ़ेंगे तो इतनी समस्या मिलेगी की लोकतंत्र के चारों स्तंभों में बिहार की इतनी बड़ी भागीदारी पर शर्म आ जाएगी।
नवीन कुमार “रणवीर”
Ranvir1singh@gmail.com
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1 comment:
ranveer ji
inider criric hi best hita hai...badhayi ho
vaise puri hindi patti ko gahre aatm mantahan ki jarurat hai...
nirmam aalochanaa ki jaruratt hai...
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