Tuesday, November 24, 2009
खुल गया लिब्रहान का पिटारा!
जिसे बचाऐ था यूपीए हमारा,
था शुभ मुहूर्त का इंतज़ार
जैसे ही बड़ी गन्नें और महंगाई की बौछार,
खोल दिया पिटारा,
जनता भूल गई सब मार...।
भूल गई सब मार, बाबा लिब्रहान आ गए,
कुछ पुरानें ज़ख्मों को कुरेद कर,
फिर दवा लगा गए...
और कौन-कौन था बेचारा?
ये एहसास करा गए...
ये एहसास करा गए औऱ,
जनता थी हैरान? कि सत्रह साल खा गए,
अब गृह मंत्रालय के पिटारे से,
बिन आदेश आ गए?
बिन आदेश आ गए…
अरे,ख़बर तो भिजवाई होती?
संघी तैयार हो जाते,
और राजनीति के पतीले में,
सांप्रदायिकता का फिर छौंका लगाते...।
पर क्या करते कांग्रेसी भी,
मौका बढ़िया जो मिला था,
एक बार फिर सदन में,
मुद्दों का दौर जो चला था।
जो घिर जाते इस बार, तो कहीं के ना रहते
कौन रहता मित्र और किसे सखा कहते?
खुद अकेले खड़े रहते सदन में,
खुद अकेले खड़े रहते सदन में...
ना वाम संग था ना दाम(महंगाई)
और क्या बताते किया जो काम?
बस बढ़ाया दाम...बस बढ़ाया दाम...।
महंगाई की ही पूछै यूपीए खैर,
बस नोटन सै दोस्ती, और जनता सै बैर...।
सूखा और किसान, भ्रष्ट और बेईमान,
सब है समान....औ फिर भी कहे यूपीए,
“मेरा पीएम महान”।
मौका बढ़िया था, ब्रह्रास्त्र छोड़नें का
धर्मनिरपेक्षता की भौंटी नोंक को,
फिर पैंना कर लो...
खुद को साफ़ रखकर, देश को मैला कर दो...।
92वें की कालिख़ में,
92वें की कालिख़ में...
कांग्रेस की कमीज़ चिट्टी निकली,
कह गए बाबा लिब्रहान 17 साल बाद,
कभी बिठाया कमीशन,
तो फिर ना दूंगा साथ...
Friday, November 20, 2009
नेहरू चाचा का बड्डे!
Saturday, November 7, 2009
पत्रकारिता के युग का अंत
जनसत्ता के संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी नहीं रहे .जनसत्ता जिसने हिंदी पत्रकारिता की भाषा बदली तेवर बदला और अंग्रेजी पत्रकारिता के बराबर खडा कर दिया .उसी जनसत्ता को बनाने वाले प्रभाष जोशी का कल देर रात निधन हो गया । दिल्ली से सटे वसुंधरा इलाके की जनसत्ता सोसाईटी में रहने वाले प्रभाष जोशी कल भारत और अस्ट्रेलिया मैच देख रहे थे । मैच के दौरान ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा । परिवार वाले उन्हें रात करीब 11.30 बजे गाजियावाद के नरेन्द्र मोहन अस्पताल ले गए , जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया । प्रभाष जोशी की मौत की खबर पत्रकारिता जगत के लिए इतनी बड़ी घटना थी कि रात भर पत्रकारों के फोन घनघनाते रहे । उनकी मौत के बाद पहले उनका पार्थिव शरीर उनके घर ले जाया गया फिर एम्स । इंदौर में उनका अंतिम संस्कार किया जाना तय हुआ है , इसलिए आज देर शाम उनका शरीर इंदौर ले जाया जाएगा ।प्रभाष जोशी जनसत्ता के संस्थापक संपादक थे।मालवा प्रभाष जोशी ने नई दुनिया से पत्रकारिता की शुरुआत की थीऔर जनसत्ता में देशज भाषा का नया प्रयोग भी उन्होंने किया । पत्रकार राजेन्द्र माथुर और शरद जोशी उनके समकालीन थे। नई दुनिया के बाद वे इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े और उन्होंने अमदाबाद और चंडीगढ़ में स्थानीय संपादक का पद संभाला। 1983 में दैनिक जनसत्ता का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसने हिन्दी पत्रकारिता की भाषा और तेवर बदल दिया ।जनसत्ता सिर्फ अखबार नहीं बना बल्कि ९० के दशक का धारदार राजनैतिक हथियार भी बना। पहली बार किसी संपादक की चौखट पर दिग्गज नेताओ को इन्तजार करते देखा। यह ताकत हिंदी मीडिया को प्रभाष जोशी ने दी ,वह हिंदी मीडिया जो पहले याचक मुद्रा में खडा रहता था । इसे कैसा संयोग कहेंगे की ठीक एक दिन पहले लखनऊ में उन्होंने हाथ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा -मेरा तो ऊपर भी इंडियन एक्सप्रेस परिवार ही घर बनेगा .इंडियन एक्सप्रेस से उनका सम्बन्ध कैसा था इसी से पता चल जाता है . प्रभाष जोशी करीब 3० घंटे पहले चार नवम्बर की शाम लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर में जनसत्ता और इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकारों के बीच थे .आज यानी छह नवम्बर को तडके ढाई बजे दिल्ली से अरुण त्रिपाठी का फोन आया -प्रभाष जी नहीं रहे .मुझे लगा चक्कर आ जायेगा और गिर पडूंगा .चार नवम्बर को वे लखनऊ में एक कर्यक्रम में हिस्सा लेने आये थे .मुझे कार्यक्रम में न देख उन्होंने मेरे सहयोगी तारा पाटकर से कहा -अम्बरीश कुमार कहा है .यह पता चलने पर की तबियत ठीक नहीं है उन्होंने पाटकर से कहा दफ्तर जाकर मेरी बात कराओ .मेरे दफ्तर पहुचने पर उनका फोन आया .प्रभाष जी ने पूछा -क्या बात है ,मेरा जवाब था -तबियत ठीक नहीं है .एलर्जी की वजह से साँस फूल रही है .प्रभाष जी का जवाब था -पंडित मे खुद वहां आ रहा हूँ और वही से एअरपोर्ट चला जाऊंगा .कुछ देर में प्रभाष जी दफ्तर आ गये .दफ्तर पहली मंजिल पर है फिर भी वे आये .करीब डेढ़ घंटा वे साथ रहे और रामनाथ गोयनका ,आपातकाल और इंदिरा गाँधी आदि के बारे में बात कर पुराणी याद ताजा कर रहे थे. तभी इंडियन एक्सप्रेस के लखनऊ संसकरण के संपादक वीरेंदर कुमार भी आ गए जो उनके करीब ३५ साल पराने सहयोगी रहे है .प्रभाष जी तब चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक थे .एक्सप्रेस के वीरेंदर नाथ भट्ट ,संजय सिंह ,दीपा आदि भी मौजूद थी .तभी प्रभाष जी ने कहा .वाराणसी से यहाँ आ रहा हूँ कल मणिपुर जाना है पर यार दिल्ली में पहले डाक्टर से पूरा चेकउप कराना है.दरअसल वाराणसी में कार्यक्रम से पहले मुझे चक्कर आ गया था .प्रभाष जोशी की यह बात हम लोगो ने सामान्य ढंग से ली .पुरानी याद तजा करते हुए मुझे यह भी याद आया की १९८८ में चेन्नई से रामनाथ गोयनका ने प्रभाष जोशी से मिलने को भेजा था तब मे बंगलोर के एक अखबार में था ..पर जब प्रभाष जोशी से मिलने इंडियन एक्सप्रेस के बहादुर शाह जफ़र रोड वाले दफ्तर गया तो वहां काफी देर बाद उनके पीए से मिल पाया .उनके पीए यानि राम बाबु को मैंने बतया की रामनाथ गोयनका ने भेजा है तो उन्होंने प्रभाष जी से बात की .बाद बे जवाब मिला -प्रभाष जी के पास तीन महीने तक मिलने का समय नहीं है ..ख़ैर कहानी लम्बी है पर वही प्रभाष जोशी बुधवार को मुझे देखने दफ्तर आये और गुरूवार को हम सभी को छोड़ गए .लखनऊ के इंडियन एक्सप्रेस की सहयोगियों से मैंने उनका परिचय कराया तभी मौलश्री की तरफ मुखातिब हो प्रभाष जोशी ने कहा था -मेरा घर तो ऊपर भी इंडियन एक्सप्रेस परिवार में ही है .हम सब कुछ समझ नहीं पाए .उसी समय भोपाल से भास्कर के पत्रकार हिमांशु वाजपई का फोन आया तो हमने कहा-प्रभाष जी से बात कर रहा हु कुछ देर बात फोन करना . काफी देर तक बात होती रही पर आज उनके जाने की खबर सुनकर कुछ समझ नहीं आ रहा .भारतीय पत्रकारिता के इस भीष्म पितामह को हम कभी भूल नहीं सकते .मेरे वे संपादक ही नहीं अभिभावक भी थे..यहाँ से जाते बोले -अपनी सेहत का ख्याल रखो .बहुत कुछ करना है.प्रभाष जी से जो अंतिम बातचीत हुईं उसे हम जल्द देंगे .प्रभाष जोशी का जाना पत्रकारिता के एक युग का अंत है .